कुछ वक्त ठहर जाती हूँ | Prachi Patil | prachipatilblogs
कुछ वक्त ठहर जाती हूँ...
जैसे संमदर होता है, ना और उसकी बहती लहरें..ठीक वैसे ही थे, मैं और मेरी बहन, हम दोनों ने कितना कुछ नहीं समेटा था, हमारे पास बहुमूल्य यादों के साथ अतरंगी सामानों का एक बड़ा सा खजाना था जिसे हम दोनों ने कभी भी खाली करने की कोशिश नहीं की, बल्कि उसमें इजाफा करती गयी और करती गयी !! मॉं अक्सर गुस्से में कहा करती थी, तुम दो शरारती आत्माओं को मेरी ही कोख से जन्म लेना था पर जब कभी प्यार करने की बात आती तो हम दोनों को पापा की झलक ही पहले नजर आती, वो हमेशा हम दोनों को " आसमान से उतरी परियॉं ", कहा करते थे ।
कब हम दोनों की बचपन की शरारतों की रेलगाड़ी पटरी से उतर गई, पता ही नहीं चला ! हमारी जिंदगी का ये वो दौर था, जहॉं हम दोनों के खुले पंख काट दिये गये, हमें घर की चार दीवारों से समेट दिया गया, घर से स्कूल और स्कूल से सीधे घर !! मॉं कहती, अब तुम दोनों बड़ी हो गई हो.. जरा संभलकर चला करो, बैठा करो, उठा करो और हॉं, अपनी कैंची जैसी जुंबान पर भी लगाम दो !! मॉं की बातों को सुनकर तो हमारे दिल में डर ने अपना डेरा लिया, जिसमें इजाफा किया पापा के रक्षावादी व्यवहार ने ! हमें जहॉं भी जाना होता पापा के साथ की जरुरत होती !! कब हम खुले पक्षियों को उम्र बढ़ने की वजह से पिंजरे में कैद कर दिया, पता ही नहीं चला !! पर असल कैदी होने का अंदाजा, तब पता चला जब हमें हमारे मॉं-बाप ने दूसरे हाथों में सौंप दिया ! सब कहते थे, अब तुम्हारी शादी हो चुकी हो जो भी करो, सोच समझकर करो !! अपने परिवार की इज्जत का ख्याल करो, समाज की बंदिशों को नाप कर चलो, खुद की ख्वहिशों को दरकिनार करके जिंदगी को जीते चलो, हम दोनों ने धीरे धीरे इस जिंदगी को भी अपना लिया, कुछ खुशियों ने हमें हल्के से छुआ तो कुछ ऑंसूओं ने हमे रुलाने की भरपूर कोशिश की पर हमारे कदम डगमगाते-डगमगाते संभलने लगे ।
जब हम दोनों को पूरी दुनिया की दुनियादारी की समझ हो चुकी, कोई हमें हमारे नाम से बुलाने की जगह ' दादी या नानी ' या कुछ तो ' बुढ़िया ' के नाम से बुलाने लगा तो अपना अक्स धुँधला होता हुआ नजर आया !! जैसे घर में स्टोर रुम होता है, पूरे घर के कबाड़े को रखने के लिए ठीक वैसे ही हालात हो चुके थे हम दोनों के भी पर फिर भी कभी अखबार को बहाना बनाकर, कभी गार्डनिंग का सहारा लेकर, कभी पोते-पोतियों के अजीब सवालों के जवाब ढूँढते ढूँढते वक्त को काटने लगे, एक दूसरे के ऑंसूओं को बॉंटने लगे, अपनी अपनी तन्हाई को दिल की शाखाओं से झॉंड़ने लगे !! पर ये तन्हाई का आलम, बुढ़ापे की हड्डियों को दर्द अब मुझसे नहीं सहा जाता है क्योंकि वो बहुत दूर जा चुकी है । मॉं के ऑंगन में जन्म लेने वाली दो जुड़ँवा बेटियों में से एक ने जिंदगी को बहुत पीछे छोड़ दिया है !! अक्सर, अपनी इस तकलीफ को कम करने पहुँच जाती हूँ, उस पुराने तालाब के किनारे जहॉं कभी हमने हमारे बचपन की शरारतों की नींव रखी जाती थी । अक्सर आ जाती हूँ, यहॉं बचपन की यादों को ताजा करने, बचपन के बहुमूल्य खजाने को खाली करने के लिए , कुछ वक्त ठहर जाने के लिए !!
-Prachi Patil
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