जब तुम गई | Prachi Patil | prachipatilblogs
जानती हो जब तुम गई
तब इन आंखों से उम्र भर की नींदें भी
तुम्हारे साथ चली गई |
पर जो नहीं गई , वो थी उम्मीद ...
चाहें मुझे ख़ुद पर यक़ीन हो या ना हो
पर इस पागल दिल को
बड़ी बेसब्री से तुम्हारा इंतज़ार रहता था |
मैं जानता था कि ये पागल हैं
और किसी दिन मुझे भी पागल बना कर ही छोड़ेगा
पर मैं करता भी तो क्या करता ?
ना मैं तुमको भूल पा रहा था
और ना इस पागल दिल को तुम्हें याद करने से
इसे रोक पा रहा था |
मैं जब-जब रोता
ये तब-तब मुझसे कहता कि क्या हुआ तुझे ?
तु क्यूं उदास हैं ?
वो नहीं हैं तो क्या , उसका प्यार तो मेरे पास हैं |
हां होगी थोड़ी तकलीफ़
हम दोनों सम्भल जायेंगे ,
आयेगी वो लौट कर , हम दोनों खिल जायेंगे |
मेरा पागल दिल , तुम नहीं आईं |
पर वहीं दुसरी ओर
मैं ये भी जानता था कि मैं अब सिर्फ़ मैं नहीं रहा |
मेरे अंदर जो ये पागल दिल था
वो अब मुझे समझाने, हसाने और बेवकूफ़ बनाने वाला
मेरा एक बहुत ही अच्छा दोस्त बन चुका था |
चाहें कुछ भी हो जाएं
ये मुझे कभी भी अकेला नहीं छोड़ने वाला था ,
भले ख़ुद के हज़ार टुकड़े क्यूं ना हुवे हो
ये उन हज़ारों टुकडों से मुझे हज़ार बार फ़िर से
एक नई उम्मीद जगा जाता था ,
दोबारा लड़ने की, दोबारा चलने की |
पर जैसे-जैसे दिन गुज़रे
ये भी मेरी ही तरह ख़ुद से सवाल करने लगा
कि क्या उसका प्यार इतना कमज़ोर था
जो फर्श पर पड़े धूल की तरह एक ही फूंक में
उसके दिल से हमेशा-हमेशा के लिए गायब हो गया ?
कि क्या उसका प्यार इतना कमज़ोर था
जो दो पल की दूरी भी नहीं सह पाया ?
शायद ये भी मेरी ही तरह
अब धीरे-धीरे , अंदर ही अंदर मर रहा था |
और फ़िर आया एक दिन इसका
बड़ा ही प्यारा सा बेवकूफियों वाला सवाल ,
कि क्या करूंगा मैं उसका इंतज़ार सारी उम्र,
बिना किसी तकलीफ़ के साथ ?
पागल दिल , भूल गया कि उसकी यादें और प्यार
आज भी हैं हम दोनों के पास |
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